मैं बेटी बनकर आई हूँ,
माँ-बाप के जीवन में|
बसेरा होगा कल मेरा,
किसी और के आँगन में|
क्यों यह रीत भगवान ने बनायी होगी?
कहते हैं आज नहीं तो कल तू परायी होगी|
दे कर जन्म पाल-पोसकर जिसने हमें बड़ा किया,
और वक़्त आया तो उन्ही हाथों से हमें विदा किया|
बेटियां इससे समझकर परिभाषा अपने जीवन की,
बना देती हैं अभिलाषा एक अटूट बंधन की|
क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है,
क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है|
बसेरा होगा कल मेरा,
किसी और के आँगन में|
क्यों यह रीत भगवान ने बनायी होगी?
कहते हैं आज नहीं तो कल तू परायी होगी|
दे कर जन्म पाल-पोसकर जिसने हमें बड़ा किया,
और वक़्त आया तो उन्ही हाथों से हमें विदा किया|
बेटियां इससे समझकर परिभाषा अपने जीवन की,
बना देती हैं अभिलाषा एक अटूट बंधन की|
क्यों रिश्ता हमारा इतना अजीब होता है,
क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है|