Saturday 8 October 2011

Hamara Naseeb, Hai Kuch Ajeeb.


मैं बेटी बनकर आई हूँ,
माँ-बाप के जीवन में|
बसेरा होगा कल मेरा,
किसी और के आँगन में|
क्यों यह रीत भगवान ने बनायी होगी?
कहते हैं आज नहीं तो कल तू परायी होगी|
दे कर जन्म पाल-पोसकर जिसने हमें बड़ा किया,
और वक़्त आया तो उन्ही हाथों से हमें विदा किया|
बेटियां इससे समझकर परिभाषा अपने जीवन की,
बना देती हैं अभिलाषा एक अटूट बंधन की|
क्यों रिश्ता हमारा  इतना अजीब होता है,
क्या बस यही हम बेटियों का नसीब होता है|

Friday 7 October 2011

Berukhi Zindagi Bhaati Nahi

सोंचता हूँ कुछ लिखूं,
पर कलम हाथ आती नहीं|
कहने के लिए मुंह जुबानी,
कुछ बातें रहती नहीं|
टकटकी लगाए बैठा हूँ,
आँखें थकी-सी रहती हैं|
करबट बदल-बदल के सोता,
नींद भी आती नहीं|
आहें ठंडी सर्द पसीना,
दिल गुदगुदा सा उठा|
बिन बीमारी के बीमार सा
जान भी जाती नहीं|
कितनी बीती, कितनी बाकी,
यही हिसाब लगाता हूँ|
प्यार से जीना सीखो दोस्तों,
बेरुखी ज़िन्दगी भाती नहीं|

Kya Yahi Zindagi Hai?


बचपन बिता खेलकूद में,
वो दिन बड़ा याद आता है.
स्कूल के दिन बीते किताबों में,
जीने का पाठ हमें सिखाता है.
विद्या पूरी होते ही,
नौकरी तलाशी जाती है.
नौकरी मिलते ही शादी की,
याद बहुत सताती है.
शादी होकर बच्चों की,
फ़िक़र शुरू हो जाती है.
अपनी दुनिया में बूढ़े माँ-बाप की,
याद नहीं आती है,
बचपन, विद्या, घर, परिवार,
पैसे की दुनिया होती है.
कभी अपने-आप से यह भी पूछो,
क्या यही जिंदगी होती है? 

Raastey Abhi Aur Bhi Hai.

ख्वाबों की दुनिया सजाकर,
धोखे बहुत खाये हैं|
तभी एक आवाज आई,
सोच में अब क्यों पड़ा है|
जिंदगी के रास्ते में,
सोचना अभी और भी है|
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी हैं|


दूर नजरें क्यों गड़ाये ,
दुनिया चमकती रेत सी है|
पास जाकर देख उसको,
यह चमक भी खोखली है|
एक रास्ता बंद हुआ तो,
दूसरा अभी और भी है|
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है|


कमल भी कीचड़ में खिलता,
देख उसको तू बदल जा|
कोयले की खान में भी,
हीरे की तलाश कर जा|
क्या हुआ जो न मिला तो,
एक हीरा और भी है|
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है|


ऊँचाइयों से खफा है क्यों,
बाट चल ले ये बटोही|
तू निगाहें यूँ गड़ा ले,
नजर आये राह तेरी|
दोराहा पे खड़ा तो क्या,
एक रास्ता और भी है|
कर्म की राहों पर चल ले ,
रास्ते अभी और भी है|


जिंदगी के मोड़ टेढ़े,
चल संभलकर ये बटोही|
कर्म करके राह बना ले,
यह राह आसान होगी|
ले शपथ तू आज से ही,
कर्म ही तेरी जिंदगी है|
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है|




क्यों भटकता मन है तेरा,
ख़्वाबों के आंसू क्यों छलकते|
इस दुनिया से बाहर आकर,
एक दुनिया फिर बसा ले|
एक अकेला तू नहीं है,
दुनिया में कई और भी है|
कर्म की राहों पर चल ले,
रास्ते अभी और भी है|